Students, keep health good. But HOW?

विद्यार्थी स्वस्थ कैसे रहें ?

 रोजमर्रा की जिंदगी में लोग केवल भाग दौड़ ही कर रहे है , यहाँ तक की उन्हें अपने लिए भी समय नहीं  कि वो खुद को recreate  कर सके | ऐसे में उन्हें  हताश ही हाथ लगती है फलस्वरूप| 
आज लोगो को एक दूसरे के लिए समय नहीं मिल पा रहा , थोड़ा बहुत hi hello अब रह गया है | 
इन सबका कारन कतिपय मॉडर्न टेक्नोलॉजी  हो सकता है पर इंसान के mind and thinking से बढ़कर कुछ नहीं | 
हम चाहे तो इसे अपने तरीके से सम्हाल सकते हैं | खुद को अलग इससे रखे  बिना ही | 

क्रियाकलाप :

  1. ब्रह्म मुहूर्त(सूर्य उगने के पहले ) में जगे | 
  2. पहला कार्य -जल ग्रहण पेट भर करें {पेट को साफ़ रखने के लिए }| 
  3. शौच जायें | 
  4. ध्यान-योग करे - योग शरीर की हर इन्द्रियों को कंट्रोल करता है , इससे शरीर की immune power बढ़ती है , रोग  से लड़ने की क्षमता बढ़ती है , मस्तिष्क स्वच्छ बिचारो का गृह बनता है ,मस्तिष्क शांत होता है, भावनावो पर हमारा अधिकार, समन्वय, नियंत्रण होता है |
क्या करें - 
  • ॐ शौक विनाशिभ्यां नमः -for concentration [हाकिनी मुद्रा ] 
  • रं -for digestion [समान मुद्रा ]
  • ॐ श्री गणेशाय नमः -for lungs and  heart [प्राण मुद्रा ]



  • ॐ हं हनुमंतये नमः -for constipation [अपां वायु मुद्रा ]

for addiction [अभय मुद्रा ]

  • ॐ विश्वनये नमः -for controlling BP [ध्यान मुद्रा ]
  • ॐ सरस्वतये नमः -for memory [हाकिनी मुद्रा ]
  • ॐ नमः शिवाय -for dizziness,migraine, knowledge   [ब्रह्मा मुद्रा ][ज्ञान मुद्रा ]
  • लं - for not to be careless [सामान मुद्रा ]
  • ॐ अग्नि देवाय नमः -for acidity [सामान मुद्रा ]
  • श्री वरुण देवताय नमः -for  kidney [वरुण मुद्रा ]
  • ॐ भवानी पांडुरंगा -for BP [लिंग मुद्रा ]
  • ॐ यं यं घण्टाभ्यां नमः -for influenza ,winter cold[लिंग मुद्रा ]
  • ॐ दिक्देवेभ्यो नमः -for deafness [शून्य मुद्रा ]


इन सभी योग आसनो से आप विद्यार्थी या अन्य भी स्वस्थ रह सकते है , अध्ययन  भी कभी disturbed  नहीं होगी | 
                                                                                                                      
ऊपरवाले ने पूरे  ब्रह्माण्ड में एक ही जीव को बेहतरीन मस्तिष्क प्रदान किया है ,वो है मनुष्य| मानव ही एकमात्र ऐसा जीव है जो अपने विवेक का प्रयोग भलीभांति करता है | युगो के बढ़ते क्रम में मानव भी बदला , उसने खुद को पुरजोर नवीकरण किया ,पर अपनी सत्यता को भी खोया है उसने | वह अपने वास्तविक संसार को भूल गया है , खुद के  अर्थ को ख़त्म किया है , मानव का वास्तविक रूप  वह भूल गया है इस संसार के चकाचौंध में | 

उसे प्रकृति ने अपने तरीके से बनाया पर अब प्रकृति ही खतरे में है | अपनी जरूरतों को सर्वोपरि मानता रहा और दुनिया के इस रंगमंच में खोता रहा | अपने उस वास्तविक स्वरूप को भूल बैठा जिस रूप में वह प्रकृति प्रेमी , अभय ,आनंद , संतोष , निरंकुश ,अटल, कर्म-निष्पक्ष , निष्काम , सुबोध तथा बोध -धर्मी हो सकता है | 

जिम्मेदारियों को हम बड़े ही बेबाकीपन व लापरवाही में निभा रहे है | बचपन में हर बच्चो का यह अधिकार है की  माता- पिता  .से हर बौद्धिक क्षमता का गुर सीखे पर वह अनभिज्ञ होता है तथा माता-पिता भी उस अंधकार में पले  बढे होते है तो वह बाल्यावस्था और उम्मीद ही क्या लगाये सिवाए भूख को मिटाने के यत्न के |  और इसी तरह दिन पर दिन मानव जीवन मात्र अब पाश्विक बनकर रह गया है | 
कोई भी इंसान जन्म से ही अपने सात चक्र में से पहले चक्र -मूलाधार चक्र में ही होता है | यह उसी चक्र का परिणाम है की हर वो कार्य जिससे जीवन सफल हो पाए , ईश्वर के समीप परिचय करवाय :से दूर होता जाता है सम्भवतः सभी व्यक्तित्व से  |


सात चक्र :
  1. Root chakra — base of the spine —(दोनों नितम्ब के बीच रीढ़ के अंतिम बिंदु में) red
  2. Sacral chakra — just below the navel(नाभि के नीचे ) — orange
  3. Solar Plexus chakra — stomach area(अमाशय के मध्य) — yellow
  4. Heart chakra — center of the chest(छाती के मध्य ) — green
  5. Throat chakra — base of the throat(कंठ में ) — blue
  6. Third Eye chakra — forehead, just above area between the eyes(तिलक लगाने की जगह में ) — indigo
  7. Crown chakra — top of the head(मस्तिष्क के ऊपरी भाग में ) — violet


इन सातो चक्र को अगर open किया जाए तो हर इंसान अपने वास्तविक परिचय को प्राप्त कर सकता  है | 
यही है मूल बौद्धिक ज्ञान जिससे हम अपने आप को पूरी तरह स्वस्थ रख सकते हैं | 
सतो चक्र के अक्षरशः उच्चारण कर उन points पर ध्यान केंद्रित करते हुवे  खुद को विस्मरणीय बना सकते 
हैं:-लं वं  रं  यं  हं  ॐ  


लाभ :-


  1. मूलाधार के संतुलित होने से आप के व्यक्तित्व में मजबूती और confidence  दिखता है| 
  2. स्वाधिष्ठान में संतुलन से आपके व्यक्तित्व में रचनात्मकता और सकारात्मकता दिखती है| 
  3. मणिपुर चक्र के जागरुक होने से आपके व्यक्तित्व में जिंदादिली और स्वाभिमान दिखता है | 
  4. अनाहत चक्र में संतुलन से आपके व्यक्तित्व में प्रेम, करुणा, दया और स्वीकारात्मकता का भाव दिखता है| 
  5. विशुद्ध चक्र के जागरण से आपके अंदर दूसरे को प्रभावित करने वाली वाचन शक्ति विकसित होती है| 
  6. आज्ञा चक्र में संतुलन से व्यक्तित्व में आध्यात्मिक तेज दिखता है| 
  7. सहस्त्रार चक्र के जागरण से हम अपने वास्तविक चैतन्य रुप को जान पाते हैं और ये व्यक्तित्व की पूर्णतः विकसित रूप  है| 



                                                                                              जारी... 

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