Students, keep health good. But HOW?
विद्यार्थी स्वस्थ कैसे रहें ?
रोजमर्रा की जिंदगी में लोग केवल भाग दौड़ ही कर रहे है , यहाँ तक की उन्हें अपने लिए भी समय नहीं कि वो खुद को recreate कर सके | ऐसे में उन्हें हताश ही हाथ लगती है फलस्वरूप|
आज लोगो को एक दूसरे के लिए समय नहीं मिल पा रहा , थोड़ा बहुत hi hello अब रह गया है |
इन सबका कारन कतिपय मॉडर्न टेक्नोलॉजी हो सकता है पर इंसान के mind and thinking से बढ़कर कुछ नहीं |
हम चाहे तो इसे अपने तरीके से सम्हाल सकते हैं | खुद को अलग इससे रखे बिना ही |
क्रियाकलाप :
इन सभी योग आसनो से आप विद्यार्थी या अन्य भी स्वस्थ रह सकते है , अध्ययन भी कभी disturbed नहीं होगी |
ऊपरवाले ने पूरे ब्रह्माण्ड में एक ही जीव को बेहतरीन मस्तिष्क प्रदान किया है ,वो है मनुष्य| मानव ही एकमात्र ऐसा जीव है जो अपने विवेक का प्रयोग भलीभांति करता है | युगो के बढ़ते क्रम में मानव भी बदला , उसने खुद को पुरजोर नवीकरण किया ,पर अपनी सत्यता को भी खोया है उसने | वह अपने वास्तविक संसार को भूल गया है , खुद के अर्थ को ख़त्म किया है , मानव का वास्तविक रूप वह भूल गया है इस संसार के चकाचौंध में |
उसे प्रकृति ने अपने तरीके से बनाया पर अब प्रकृति ही खतरे में है | अपनी जरूरतों को सर्वोपरि मानता रहा और दुनिया के इस रंगमंच में खोता रहा | अपने उस वास्तविक स्वरूप को भूल बैठा जिस रूप में वह प्रकृति प्रेमी , अभय ,आनंद , संतोष , निरंकुश ,अटल, कर्म-निष्पक्ष , निष्काम , सुबोध तथा बोध -धर्मी हो सकता है |
जिम्मेदारियों को हम बड़े ही बेबाकीपन व लापरवाही में निभा रहे है | बचपन में हर बच्चो का यह अधिकार है की माता- पिता .से हर बौद्धिक क्षमता का गुर सीखे पर वह अनभिज्ञ होता है तथा माता-पिता भी उस अंधकार में पले बढे होते है तो वह बाल्यावस्था और उम्मीद ही क्या लगाये सिवाए भूख को मिटाने के यत्न के | और इसी तरह दिन पर दिन मानव जीवन मात्र अब पाश्विक बनकर रह गया है |
कोई भी इंसान जन्म से ही अपने सात चक्र में से पहले चक्र -मूलाधार चक्र में ही होता है | यह उसी चक्र का परिणाम है की हर वो कार्य जिससे जीवन सफल हो पाए , ईश्वर के समीप परिचय करवाय :से दूर होता जाता है सम्भवतः सभी व्यक्तित्व से |
सात चक्र :
लाभ :-
जारी...
रोजमर्रा की जिंदगी में लोग केवल भाग दौड़ ही कर रहे है , यहाँ तक की उन्हें अपने लिए भी समय नहीं कि वो खुद को recreate कर सके | ऐसे में उन्हें हताश ही हाथ लगती है फलस्वरूप|
आज लोगो को एक दूसरे के लिए समय नहीं मिल पा रहा , थोड़ा बहुत hi hello अब रह गया है |
इन सबका कारन कतिपय मॉडर्न टेक्नोलॉजी हो सकता है पर इंसान के mind and thinking से बढ़कर कुछ नहीं |
हम चाहे तो इसे अपने तरीके से सम्हाल सकते हैं | खुद को अलग इससे रखे बिना ही |
क्रियाकलाप :
- ब्रह्म मुहूर्त(सूर्य उगने के पहले ) में जगे |
- पहला कार्य -जल ग्रहण पेट भर करें {पेट को साफ़ रखने के लिए }|
- शौच जायें |
- ध्यान-योग करे - योग शरीर की हर इन्द्रियों को कंट्रोल करता है , इससे शरीर की immune power बढ़ती है , रोग से लड़ने की क्षमता बढ़ती है , मस्तिष्क स्वच्छ बिचारो का गृह बनता है ,मस्तिष्क शांत होता है, भावनावो पर हमारा अधिकार, समन्वय, नियंत्रण होता है |
- ॐ शौक विनाशिभ्यां नमः -for concentration [हाकिनी मुद्रा ]
- रं -for digestion [समान मुद्रा ]
- ॐ श्री गणेशाय नमः -for lungs and heart [प्राण मुद्रा ]
- ॐ हं हनुमंतये नमः -for constipation [अपां वायु मुद्रा ]
- ॐ विश्वनये नमः -for controlling BP [ध्यान मुद्रा ]
- ॐ सरस्वतये नमः -for memory [हाकिनी मुद्रा ]
- ॐ नमः शिवाय -for dizziness,migraine, knowledge [ब्रह्मा मुद्रा ][ज्ञान मुद्रा ]
- लं - for not to be careless [सामान मुद्रा ]
- ॐ अग्नि देवाय नमः -for acidity [सामान मुद्रा ]
- श्री वरुण देवताय नमः -for kidney [वरुण मुद्रा ]
- ॐ भवानी पांडुरंगा -for BP [लिंग मुद्रा ]
- ॐ यं यं घण्टाभ्यां नमः -for influenza ,winter cold[लिंग मुद्रा ]
- ॐ दिक्देवेभ्यो नमः -for deafness [शून्य मुद्रा ]
इन सभी योग आसनो से आप विद्यार्थी या अन्य भी स्वस्थ रह सकते है , अध्ययन भी कभी disturbed नहीं होगी |
ऊपरवाले ने पूरे ब्रह्माण्ड में एक ही जीव को बेहतरीन मस्तिष्क प्रदान किया है ,वो है मनुष्य| मानव ही एकमात्र ऐसा जीव है जो अपने विवेक का प्रयोग भलीभांति करता है | युगो के बढ़ते क्रम में मानव भी बदला , उसने खुद को पुरजोर नवीकरण किया ,पर अपनी सत्यता को भी खोया है उसने | वह अपने वास्तविक संसार को भूल गया है , खुद के अर्थ को ख़त्म किया है , मानव का वास्तविक रूप वह भूल गया है इस संसार के चकाचौंध में |
उसे प्रकृति ने अपने तरीके से बनाया पर अब प्रकृति ही खतरे में है | अपनी जरूरतों को सर्वोपरि मानता रहा और दुनिया के इस रंगमंच में खोता रहा | अपने उस वास्तविक स्वरूप को भूल बैठा जिस रूप में वह प्रकृति प्रेमी , अभय ,आनंद , संतोष , निरंकुश ,अटल, कर्म-निष्पक्ष , निष्काम , सुबोध तथा बोध -धर्मी हो सकता है |
जिम्मेदारियों को हम बड़े ही बेबाकीपन व लापरवाही में निभा रहे है | बचपन में हर बच्चो का यह अधिकार है की माता- पिता .से हर बौद्धिक क्षमता का गुर सीखे पर वह अनभिज्ञ होता है तथा माता-पिता भी उस अंधकार में पले बढे होते है तो वह बाल्यावस्था और उम्मीद ही क्या लगाये सिवाए भूख को मिटाने के यत्न के | और इसी तरह दिन पर दिन मानव जीवन मात्र अब पाश्विक बनकर रह गया है |
कोई भी इंसान जन्म से ही अपने सात चक्र में से पहले चक्र -मूलाधार चक्र में ही होता है | यह उसी चक्र का परिणाम है की हर वो कार्य जिससे जीवन सफल हो पाए , ईश्वर के समीप परिचय करवाय :से दूर होता जाता है सम्भवतः सभी व्यक्तित्व से |
सात चक्र :
- Root chakra — base of the spine —(दोनों नितम्ब के बीच रीढ़ के अंतिम बिंदु में) red
- Sacral chakra — just below the navel(नाभि के नीचे ) — orange
- Solar Plexus chakra — stomach area(अमाशय के मध्य) — yellow
- Heart chakra — center of the chest(छाती के मध्य ) — green
- Throat chakra — base of the throat(कंठ में ) — blue
- Third Eye chakra — forehead, just above area between the eyes(तिलक लगाने की जगह में ) — indigo
- Crown chakra — top of the head(मस्तिष्क के ऊपरी भाग में ) — violet
इन सातो चक्र को अगर open किया जाए तो हर इंसान अपने वास्तविक परिचय को प्राप्त कर सकता है |
यही है मूल बौद्धिक ज्ञान जिससे हम अपने आप को पूरी तरह स्वस्थ रख सकते हैं |
सतो चक्र के अक्षरशः उच्चारण कर उन points पर ध्यान केंद्रित करते हुवे खुद को विस्मरणीय बना सकते
हैं:-लं वं रं यं हं ॐ ॐ
लाभ :-
- मूलाधार के संतुलित होने से आप के व्यक्तित्व में मजबूती और confidence दिखता है|
- स्वाधिष्ठान में संतुलन से आपके व्यक्तित्व में रचनात्मकता और सकारात्मकता दिखती है|
- मणिपुर चक्र के जागरुक होने से आपके व्यक्तित्व में जिंदादिली और स्वाभिमान दिखता है |
- अनाहत चक्र में संतुलन से आपके व्यक्तित्व में प्रेम, करुणा, दया और स्वीकारात्मकता का भाव दिखता है|
- विशुद्ध चक्र के जागरण से आपके अंदर दूसरे को प्रभावित करने वाली वाचन शक्ति विकसित होती है|
- आज्ञा चक्र में संतुलन से व्यक्तित्व में आध्यात्मिक तेज दिखता है|
- सहस्त्रार चक्र के जागरण से हम अपने वास्तविक चैतन्य रुप को जान पाते हैं और ये व्यक्तित्व की पूर्णतः विकसित रूप है|
जारी...
Comments
Post a Comment